स्कन्द पुराण में हिमालय को पॉच भौगोलिक क्षेत्रों में बांटा गया है।
खण्डाः पत्र्च हिमालयस्य कथिताः नैपालकूमाँचंलौ। केदारोऽथ जालन्धरोऽथ रूचिर काश्मीर संज्ञोऽन्तिमः ।।
अर्थात हिमालय क्षेत्र में नेपाल, कुर्मांचल, केदारखण्ड़ (गढवाल), जालन्धर ( हिमाचल प्रदेश ) और सुरम्य काश्मीर पॉच खण्ड है।
पौराणिक ग्रन्थों में कुर्मांचल क्षेत्र मानसखण्ड के नाम से प्रसिद्व था। जिनमें उत्तरीय हिमालय को सिद्ध गन्धर्व, यक्ष, किन्नर जातियों की सृष्टि और इस सृष्टि का राजा कुबेर बताया गया हैं। कुबेर की राजधानी अलकापुरी ( बद्रीनाथ से ऊपर) बताई गयी है। पुराणों के अनुसार राजा कुबेर के राज्य में ऋषि -मुनि तप व साधना किया करते थे।
अंग्रेज इतिहासकारों के अनुसार हुण, सकास, नाग खश आदि जातियां भी हिमालय क्षेत्र में निवास करती थी। किन्तु पौराणिक ग्रन्थों में केदार खण्ड व मानस खण्ड के नाम से इस क्षेत्र का व्यापक उल्लेख है।
इस क्षेत्र को देव-भूमि व तपोभूमि माना गया है। मानस खण्ड का कुर्मांचल व कुमाऊं नाम चन्द राजाओं के शासन काल में प्रचलित हुआ। कुर्मांचल पर चन्द राजाओं का शासन कत्यूरियों के बाद प्रारम्भ होकर सन 1790 तक रहा। सन 1790 में नेपाल की गोरखा सेना ने कुमाऊं पर आक्रमण कर कुमाऊं राज्य को अपने अधीन कर दिया। गोरखाओं का कुमाऊं पर सन 1790 से 1815 तक शासन रहा।
सन 1815 में अंग्रजो से अन्तिम बार परास्त होने के उपरान्त गोरखा सेना नेपाल वापस चली गई। किन्तु अंग्रजों ने कुमाऊं का शासन चन्द राजाओं को न देकर कुमाऊं को ईस्ट इण्ड़िया कम्पनी के अधीन कर किया। इस प्रकार कुमाऊं पर अंग्रेजो का शासन 1815 से प्रारम्भ हुआ।
ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार केदार खण्ड कई गढों( किले ) में विभक्त था। इन गढों के अलग राजा थे और राजाओं का अपने-अपने आधिपत्य वाले क्षेत्र पर साम्राज्य था।
इतिहासकारों के अनुसार पंवार वंश के राजा ने इन गढो को अपने अधीनकर एकीकृत गढवाल राज्य की स्थापना की और श्रीनगर को अपनी राजधानी बनाया। केदार खण्ड का गढवाल नाम तभी प्रचलित हुआ।
सन 1803 में नेपाल की गोरखा सेना ने गढवाल राज्य पर आक्रमण कर गढवाल राज्य को अपने अधीन कर लिया । महाराजा गढवाल ने नेपाल की गोरखा सेना के अधिपत्य से राज्य को मुक्त कराने के लिए अंग्रजो से सहायता मांगी। अंग्रेज सेना ने नेपाल की गोरखा सेना को देहरादून के समीप सन 1815 में अन्तिम रूप से परास्त कर दिया । किन्तु गढवाल के तत्कालीन महाराजा द्वारा युद्ध व्यय की निर्धारित धनराशि का भुगतान करने में असमर्थता व्यक्त करने के कारण अंग्रजो ने सम्पूर्ण गढवाल राज्य गढवाल को न सौप कर, अलकनन्दा मन्दाकिनी के पूर्व का भाग ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन में शामिल कर गढवाल के महाराजा को केवल टिहरी जिले ( वर्तमान उत्तरकाशी सहित ) का भू-भाग वापिस किया।
गढवाल के तत्कालीन महाराजा सुदर्शन शाह ने 28 दिसम्बर 1815 को टिहरी नाम के स्थान पर जो भागीरथी और भिलंगना के संगम पर छोटा सा गॉव था, अपनी राजधानी स्थापित की। कुछ वर्षों के उपरान्त उनके उत्तराधिकारी महाराजा नरेन्द्र शाह ने ओड़ाथली नामक स्थान पर नरेन्द्र नगर नाम से दूसरी राजधानी स्थापित की । सन 1815 से देहरादून व पौडी गढवाल ( वर्तमान चमोली जिलो व रूद्र प्रयाग जिले की अगस्तमुनि व ऊखीमठ विकास खण्ड सहित) अंग्रेजो के अधीन व टिहरी गढवाल महाराजा टिहरी के अधीन हुआ।
भारतीय गणतंन्त्र में टिहरी राज्य का विलय अगस्त 1949 में हुआ और टिहरी को तत्कालीन संयुक्त प्रांत का एक जिला घोषित किया गया। भारत व चीन युद्व की पृष्ठ भूमि में सीमान्त क्षेत्रों के विकास की दृष्टि से सन 1960 में तीन सीमान्त जिले उत्तरकाशी, चमोली व पिथौरागढ़ का गठन किया गया ।
शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009
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आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .आपका लेखन सदैव गतिमान रहे ...........मेरी हार्दिक शुभकामनाएं......
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सारी शुभकामनायें...
जवाब देंहटाएंjankari ke liye thanks. narayan narayan
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत में आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंहमारी शुभकामनायें
ब्लोगिंग जगत मे स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहिए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
www.zindagilive08.blogspot.com
आर्ट के लिए देखें
www.chitrasansar.blogspot.com
बहूत सुंदर लेख
जवाब देंहटाएंस्वागत है आपका ब्लॉग जगत में
darddilka
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है,हमारी बहुत सारी शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंvery good information for us
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